विज्ञान की धर्म एवं नैतिकता से दूरी


जब राजसत्ता विज्ञान का हथियार की तरह इस्तेमाल करे तो नैतिकता को भूलना पड़ता है। हर राजसत्ता विज्ञान के किसी भी प्रयोग को दूसरों को हानि पहुंचाने के लिए प्रयोग करती है तो उसके अपने आत्मरक्षा के तर्क होते हैं। लेकिन जब कोई हथियार ऐसा बन जाए जो पूरी मानवता को ही नष्ट कर सकने की क्षमता रखता हो तो जानना चाहिए की इस दिशा में और आगे नही जाना चाहिए।

कोविड का वायरस भी इसी तरह के वैज्ञानिक प्रयोग का परिणाम था। अमेरिका ने चीन की जिस प्रयोगशाला को करोड़ों डॉलर देकर कोविड वायरस पर प्रयोग करवाए थे, उसी लैब के किसी कर्मचारी के कारण यह वायरस दूसरे लोगों में संक्रमित हुआ। अब तक मिली जानकारी से हमे यह पता चलता है की चीन की वुहान की जिस लैब से यह वायरस वुहान शहर में और फिर वहां से सारी दुनिया में फैला, इसे चीनी सरकार चला रही थी और उसे पैसा अमेरिकन सरकार दे रही थी। अमेरिकन सरकार की इस वायरस के निर्माण में सहभागिता इसी बात से जाहिर होती है की लाखों अमेरिकियों के कोविड से मारे जाने के बाद भी इसके उद्गम के बारे में चीनी सरकार से जवाब नही मांग रही है। कहते है कि दुसरो के लिए गड्ढा खोदोगे तो खुद उसमे गिर जाने की संभावना बनती है। इसी तरह अमेरिकी सरकार ने पैसा देकर जिस वायरस को बनवाया, उसी वायरस ने सबसे जाड़ा उसी के लोगों की जान ली।
नैतिकता, अध्यात्म और धर्म के अधिष्ठान के बिना विज्ञान मनुष्य के लिए वरदान नही अभिशाप बनेगा।

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