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Showing posts from November, 2022

Zuck has lost it

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Nick Clegg from the company Meta was discussing about his company's vision of the Metaverse in the global technology conference arranged by Carnegie India in New Delhi today.  After listening to his pitch for promotion of Metaverse, he was seen advocating for governments to come up with rules and regulations for the citizen of Metaverse.  Consider this. If you are playing a three dimensional role playing multiplayer game. The game is real for you as long as you play it. It ceases to exist for you as soon as you log off the game. If you want to do real life transactions like buying or ordering an item online while you are in your online Avatar, you would receive that item delivered to your place as you would get it on Amazon or Flipkart  The problem with Metaverse, the way it is being promoted seems as if it has a life of its own. It assumes that real life is separate from the activities you perform on internet posing as your 3D Avatar. Mark Zuckerberg is promoting this

Society on a sand base

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I don't find a correct synonym for the Hindi saying "ret ka mahal". A closer word will be "House of cards". The way I look at it, our society is willfully turning into a house of cards. I am referring to the Indian society.  Traditionally Indian society opted for strong base. It always chose a firm and reliable structure and methods than temperory and shortcut methods. That is how the indian society grew through millennia alongwith the wisdom imparted by its wise from generation to generation. In Vedic period and later social conditions were always opted to be as stable as possible, giving a certain sense of stability to the mind and peace for the social economic activities. In these relatively stable climate, people could pass through the life experiences with minimum turbulence and also find time and strength to understand higher values of life and alongwith strive for spiritual liberation.  The spiritual journey of seekers could continue from gene

Need for change

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The current regime of Patents and licences is highly deterrent for new entrants. If you consider the entire humanity as an organic unit then all the economical policies should be created in such a way that benefits to all the humanity. It needs a certain kind of elevated intelligence or enlightenment to understand this concept. The effects of allowing patents can be seen in the example of AC Vs DC wars in the US in 1880-90. It started with Edisons discovery of electric bulbs, and then several inventions he made. We all know that. But the sinister part of this seemingly altruistic scientific landscape was the patenting part. We allowed the inventor to decide on the use of the invention in a way he deemed it fit. We see that in the conflict between Edison and Tesla promoting their own patented electricity distribution mechanisms in the US. In my opinion, giving an inventor exclusive rights to decide how his invention should be used by the rest of the mankind is inefficient an

विज्ञान की धर्म एवं नैतिकता से दूरी

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जब राजसत्ता विज्ञान का हथियार की तरह इस्तेमाल करे तो नैतिकता को भूलना पड़ता है। हर राजसत्ता विज्ञान के किसी भी प्रयोग को दूसरों को हानि पहुंचाने के लिए प्रयोग करती है तो उसके अपने आत्मरक्षा के तर्क होते हैं। लेकिन जब कोई हथियार ऐसा बन जाए जो पूरी मानवता को ही नष्ट कर सकने की क्षमता रखता हो तो जानना चाहिए की इस दिशा में और आगे नही जाना चाहिए। कोविड का वायरस भी इसी तरह के वैज्ञानिक प्रयोग का परिणाम था। अमेरिका ने चीन की जिस प्रयोगशाला को करोड़ों डॉलर देकर कोविड वायरस पर प्रयोग करवाए थे, उसी लैब के किसी कर्मचारी के कारण यह वायरस दूसरे लोगों में संक्रमित हुआ। अब तक मिली जानकारी से हमे यह पता चलता है की चीन की वुहान की जिस लैब से यह वायरस वुहान शहर में और फिर वहां से सारी दुनिया में फैला, इसे चीनी सरकार चला रही थी और उसे पैसा अमेरिकन सरकार दे रही थी। अमेरिकन सरकार की इस वायरस के निर्माण में सहभागिता इसी बात से जाहिर होती है की लाखों अमेरिकियों के कोविड से मारे जाने के बाद भी इसके उद्गम के बारे में चीनी सरकार से जवाब नही मांग रही है। कहते है कि दुसरो के लिए गड्ढा खोदोगे तो खुद उस

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस बनाम निसर्ग और धर्म

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आजकल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस द्वारा स्वचालित मशीनों को बनाने की होड़ सी लगी हुई है। जैसे खाना बनाने वाली मशीन, जिसमे आप पाक कृति डाल दें और वह मशीन आपके लिए वह भोजन बना देगी। या मैन्युफैक्चरिंग के अलग अलग काम जो रिपिटिटीव होते है, उनको मशीनों से करवाने की कोशिश हो रही है। या किसी रेल स्टेशन का सूचना केंद्र है उसमे किसी रोबोट को बिठा दिया जाय तो वह उपलब्ध जानकारी को पूछनेवाले यात्री को बता सकेगा। यहां तक तो ठीक है कि इंसानों से किए जानेवाले काम आप स्वचालित यंत्रों से करवाएं लेकिन इससे आगे यह सोचना की यंत्रों में, जिसे अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस नाम दिया जा रहा है, मनुष्यों की तरह संवेदनाएं निर्मित की जा सकेंगी सरासर मूर्खता है। बिल गेट्स और मार्क जुकरबर्ग जैसे लोग भी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के विषय में मानते हैं कि मनुष्यों जैसी संवेदनाएं  यंत्रों के भीतर निर्मित की जा सकेंगी। वे यह भी मानते है कि यंत्र भी कभी स्वतंत्र रूप से सोचेंगे और व्यवहार करेंगे।  अब तो उन्होंने ऐसी धारणा बनाई है कि यंत्र आगे विकसित होकर मनुष्यों से अधिक प्रगट प्रजाति बनेंगे। असल में वे जो भी बनाएंगे वो म

ओशो का रशिया के नाम संदेश

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भारत के पररष्ट् मंत्री इस समय रशिया के दौरे पर गए हुए है। भारत और रशिया के संबंध आज भी मजबूत है। जब गोरबोचेव सोवियत यूनियन में खुलापन और स्वतंत्रता लाने की बात कर रहे थे उस समय ओशो ने अपने प्रवाचनों में गोर्बाचोव को इस बात से चेताया था कि सोवियत राशियां में पिछले सत्तर वर्षों में लोगों को जिस प्रकार के जीवन शैली में रहना पड़ा था, उसमे भले ही वे कष्ट और अभाव का जीवन जिया लेकिन लोगों में एक मासूमियत है। जो पश्चिम के लोगों में खो गाई है। इसलिए सोवियत संघ के लोगों को अचानक से सारी दुनिया के सामने एक्सपोज कर देना उनके लिए हितकर नहीं सिद्ध होगा। उन्हे पहले इस बात के लिए तैयार किया जाए। ओशो ने उन्हे यह भी कहा था की सोवियत संघ के लोगों की मासूमियत के कारण वे धर्म में अच्छी गती कर सकेंगे, इसलिए उन्होंने अपने संन्यासियों को ध्यान सिखाने के लिए राशियां भेजने का भी प्रस्ताव दिया।  आज हम ओशो ने जताई हुई आशंकाओं को प्रकट होता हुआ देख रहे है। जो पहले एक ही संयुक्त राष्ट्र था, उसके अलग अलग भागों में बांट कर उन्हे आपस में लड़ाया जा रहा है, यह दुर्भाग्यपूर्ण है।

COP27 संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन चर्चा सत्र

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  इजिप्त के शर्म अल शेख शहर में इस समय COP 27 नाम से एक आयोजन चल रहा है. जिसमे दुनिया के सभी देशों के प्रतिनिधि वैश्विक ग्लोबल वार्निंग से होने वाले पर्यावरण के संकट का सामना कैसे किया जाए इसकी चर्चा करेंगे. कल याने ९ तारीख से 18 तारीख तक प्रतिदिन पर्यावरण से सम्बंधित अलग अलग विषयों पर चर्चा होगी. यूनाइटेड Nations के अधीन चलने वाले इस आयोजन को आप अपने मोबाइल पर COP27 live stream इस नाम से सर्च कर के देख सकते हैं. आजकल यूनाइटेड नेशंस की सभाएं लाइव प्रसारित की जाती हैं.  

दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोय

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जर्मनी के चांसलर इस समय चीन की यात्रा पर हैं. इस समय जर्मनी की हालत दो पाटों के बीच फंसे हुए दाने  की तरह बनी हुई है. और यह दाना खुद इन पाटों के बीच में कूद गया था.   जर्मनी की अर्थव्यवस्था उसके इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन पर निर्भर है. दुसरे विश्व युद्ध के बाद जर्मनी ने बड़ी तेजी से अपना विकास किया और वह यूरोप का सबसे अमीर देश बन गया. उसके इस विकास के दो बड़े कारण थे. एक तो उन्होंने रशिया से तेल और प्राकृतिक गैस का आयात शुरू किया जिससे उनकी फैक्ट्रीयों को इंधन मिलता रहा. दुसरा उन्होंने चीन में जाकर अपनी फॅक्ट्रियां  खोली, जिससे उनके सामान का उत्पाद खर्च काम आता और फिर उन्हें वे चीन में बेचते और दुनिया के दुसरे देशों को निर्यात करते. यह सब वर्षो तक सुचारू रूप से चलता रहा. लेकिन जब अमेरिका ने चीन से दुरी बढानी शुरू की तो धीरे धीरे अमेरिकी निवेश चीन से कम होने लगा. जर्मनी अमेरिका के साथ नाटो संगठन का सदस्य है, यानि अगर नाटो के किसी सदस्य देश का किसी अन्य देश से युद्ध हो तो नाटो के अन्य देशों को उस युद्ध में शामिल होना पड़ता है. साथ ही जर्मनी 5 Eyes  नाम के एक संगठन का भी सदस्य है, जो दुनियाभर के

क्या ये सही मार्ग है?

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हमें वाकई सोचना पड़ेगा कि अमेरिका का जो वेस्टर्न वर्क कल्चर है उससे हमारे बच्चों पर क्या असर पड़ता है.  हमने भारत में प्राचीन काल से ज्ञान एवं कुशलता का सम्मान किया है। जब तक समाज स्थिर था, युद्ध आदि से बिखर ना गया था तब समाज के विभिन्न वर्ग अपनी अपनी कुशलता से एक दूसरे को सहयोग देते और एक दूसरे की आजीविका में सहयोग देते। आम तौर पर किसी व्यक्ति को किसी एक कार्य में कुशलता उसकी आजीविका के लिए पर्याप्त होती। हमने आयुर्वेद, योग, नाट्यशास्त्र संगीत और साथ ही रोजमर्रा की उपयोगी विधाएं जैसे कुम्हार, लुहार, बुनकर, लकड़ी के कारीगर भी अदभुत कुशलता से अपने अपने काम करते देखे। शायद ही समाज का कोई वर्ग अप्रत्याशित रूप से धनी होता था, लेकिन सभी वर्गों को पर्याप्त आजीविका एवं उचित सम्मान मिलता था।  अब तक की जितनी कार्य कुशलताएं थीं उनमें सीखने का शुरुआती समय होता था, फिर लगभग जीवन भर वह व्यक्ति उस काम को अपनी आजीविका के तौर पर कर सकता।  दुर्भाग्य से इलेक्ट्रॉनिक्स और कंप्यूटर और उससे जुड़े सॉफ्टवेयर का विकास पश्चिम की सभ्यता ने आरंभ किया और उसमे जितने भी अविष्कार हुए उन पर अपना एकाधिकार

चला जर्मनी चीन से मिलने !

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  धृतराष्ट्र  उवाच : हे संजय, आज पृथ्वीपर होने वाली घटनाओं का संक्षिप्त विवरण मुझे बता | संजय उवाच: हे राजन, आज जर्मन देश का राजा अपने देश के वणिक, व्यापारियों के साथ चीन के सम्राट से मिलने पहुंचा. इस समय चीन का सम्राट पृथ्वी के अन्य राष्ट्रों से भिन्नता रखता है इसलिए सभी देश जर्मन राष्ट्र के राजा के चीन के सम्राट से मिलने पर चिंतित हैं. पिछले कुछ दिनों से चीन एवं जर्मन राष्ट्र के बीच व्यापार बढ़ा है. जर्मन राष्ट्र की बड़ी बड़ी कम्पनियाँ जैसे Volkswagen, Deutsche Bank, Siemens, रसायन निर्मिती करने वाली कंपनी BASF ये सभी अपने लाभ का बड़ा भाग चीन देश के साथ वाणिज्य से पाती हैं इसलिए आज के महाभारत में जर्मन देश चीन के साथ अपने सम्बन्ध कटु नहीं करना चाहता. लेकिन दूसरी और यूरोप भूभाग के अन्य राष्ट्र एवं विश्व का सर्वाधिक सामर्थ्यशाली राष्ट्र जिसे लोग अमेरिका कहते हैं वे सभी जर्मनों के इस चीन यात्रा से चिंतित हैं. तो यही है आज का प्रमुख समाचार राजन. आप का दिन शुभ हो. 

Economic implications of a spiritual life

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The Russia Ukraine war is raging from 210 days today with no end of it in sight. The greatest war in India, the Mahabharata, it is said that lasted for 18 days. It is said that Mahabharata war left such a deep impact in the Indian mind that after 2 and a half thousand after Mahabharata, when Mahavira and Buddha appeared on the Indian scene, the entire Indian subcontinent suerged itself in the teachings of Meditation and non violence.  We learned our lessons. And we don't forget it. The epic book Mahabharata still works as an inspiration for thinkers and scholars of every generation where they reinterpret Mahabharata events to get a deeper understanding of the events happening in the present generation.  It is said that there is nothing in the world that Mahabharata does not have an answer for. Let us see. What would be the resolution for the Russia Ukraine war in Mahabharata. Lack of enlightened mediators like Krishna.  When you have a group of people in your society wh

तंत्रज्ञानाचा दुरुपयोग

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तंत्रज्ञानाचा दुरुपयोग. जेव्हा मायक्रोसॉफ्ट ने कॉम्प्युटर operating system आणि इतर सॉफ्टवेअर च्या क्षेत्रात आपले बस्तान बसवले त्यानंतर त्यांनी कॉम्प्युटर वर आणि ऑनलाईन गेम खेळण्यासाठी X Box या नावाने गेमिंग कॉम्प्युटर आणला. माझ्या मते हा तंत्रज्ञानाचा दुरुपयोग आहे. चीन मध्ये जेव्हा युरोपीय व्यापारी पोहोचले तेव्हा त्यातले काही जण भारतातून अफू नेऊन चीन मध्ये विकत असतं. चिनी लोकांना त्याची सवय लागली आणि त्यामधून होणाऱ्या फायद्याची युरोपियन लोकांना सवय लागली. आणि निव्वळ आपल्याला अफूच्या व्यापारातून मिळणारा नफा थांबू नये यासाठी युरोपियन देशांनी चीनमधील त्या भागातील राजवट उलथून टाकली हा इतिहास जाणकारांना माहीत असेलच. या ठिकाणी आर्थिक फायद्यासाठी वाटेल ते विकण्याची आणि हा व्यापार अनिर्बंध करता यावा यासाठी राजवट देखील उलथून टाकण्याची मनोवृत्ती आपण इतिहासात पहिली आहे. देव आणि दानवांच्या समुद्र मंथनातून अमृत मिळते तसेच विष ही मिळते. त्याच प्रमाणे तंत्रज्ञनाद्वारे आपण मानवी जीवनासाठी उपयुक्त आणि अनुपयुक्त वस्तू निर्माण करू शकतो. एखादी गोष्ट करणे तांत्रिक दृष्ट्या शक्य आहे म्हणून ती कर

Musk plans a subscription based Twitter

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Elon Musk in an interview at Ron Baron Conference 2022 put forward his strategy for future course of Twitter he recently acquired for 44 billion US dollars.  He wants to generate revenue from Twitter through a subscription based model. His idea is to charge a subscription fee of 8 dollies per month to get a verified Twitter handle. He added further that he plans to provide additional premium features for the paid users of Twitter like ability to add longer videos, podcasts and also to generate ad revenues like in YouTube.  He explained further that he will be tweaking the search algorithm of Twitter so that the paid verified users Tweets will be shown in the order of search results, thus burying the unpaid users Tweets in oblivion. Looks like Elon Musk is trying to change the revenue structure of the internet based companies that gained steam starting from the Yahoo, Google and so on. None of these companies touched the free to use model of their services like email, web st

मूल्य रहित अर्थव्यवस्थेचे दुष्परिणाम

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मूल्य रहित अर्थव्यवस्था  आजची अर्थव्यवस्था ही मूल्याधारित नाही. मूल्य याचा अर्थ आपण शुध्द व्यावहारिक अर्थाने घेतो. पण व्यावहारिक अर्थाबरोबरच मूल्य हे वैचारिक असू शकते, नैतिक असू शकते तसेच धार्मिक ही असू शकते.  आज आपण व्यापार आणि व्यवहार करताना समोरच्या व्यक्तीशी आपला वैचारिक मतभेद आहे किंवा नाही याचा विचार करीत नाही किंवा असे करणे अपेक्षित ही नसते. एखाद्या लहान गावात एखाद्या दुकानात किंवा हॉटेलात जी माणसे नेहमी खरेदी करतात त्यातली बहुतांश माणसे ही त्या दुकानदाराच्या ओळखीची असतात. पण जसजसे आपण मोठ्या शहरात पाहायला जाऊ तिथे रोज नवी माणसे दुकानात खरेदीसाठी येतात. त्यामुळे दुकानदार आणि त्याचे गिऱ्हाईक यांच्यातला संपर्क हा एखाद्या वस्तूच्या देवाणघेवाणी पुरताच असतो. आणि त्याने दुकानदाराला आणि त्याच्या गिर्हाईकाला काही अडचण होत नाही.  तर मग व्यवहार आणि व्यवहारात नैतिक मूल्य किंवा त्यामुळे निर्माण होणारा मतभेद याचा दुकानदारावर किंवा गिऱ्हाईकावर कसा पडू शकतो.  तेच मी तुम्हाला येथे सांगायचा प्रयत्न करत आहे. नैतिक मुल्यांचा विचार न करता जर तुम्ही व्यवहार करीत राहिला तर त्याचा जागतिक अर्थव्यवस्थेव